खूबसूरत व्यंग!
एक सौ एक दिन बाद,
आज मुलाक़ात इस दृश्य से,
जहा होना था आलम खौफ का,
पर सब दिख रहा बेफिक्र सा ।
क्या ये बेफिक्री क्षतिशून्य है?
क्या ये परिचित नहीं अविरत वातावरण से?
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अब जो दृश्य मेरे समक्ष है,
किसी व्यंग्य से कम नहीं।
क्योंकि यहां ऐसी बेफिक्री है,
जो जीना जानती ऐसे,
जैसे कल शायद आखिरी हो।
- रित्ती
संधर्ग - हरे बागाने की सैर पर मिली मैं ऐसे बच्चो से जिन्हें ना कोरोना का डर है ना कोई फिक्र। ये तो जी रहे थे ऐसी बेफिक्री में जिससे तुमने बात भी नहीं की होगी। पार्क में ये चार से पंद्रह साल के बच्चे ऐसे झूम रहे थे, मानो इन्हीं का एकाधिकार हो... जहा हमारे लोगों में इतना डर है और खौफ है , ये बच्चे एक खूबसरत था व्यंग है। .
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