इश्तहार

इश्तहार छपवाए तेरी गुमशुदा मुस्कान के!
जरा सुनो जहां कही हो...!
आजाओ, हम बड़े हताश है,
क्यों, क्योंकि दुखी चहरे हमे सुआते नहीं।

मुस्कान पर भी देखो इश्तहार छपने लगे है,
कल हम खो जाए तो जमाने को छाप दोगी?
नहीं पर खुदको जरूर भटकने का मौका दूंगी,
तलाश में तेरी तमाम सवालात करूंगी।

ना मिला फिर भी तो क्या?
छोड़ दोगी साथ मुस्कान का तुम..?
नहीं, ये मुश्किल घड़ियां मुझे बांध सकती है,
पर मेरी उम्मीद, लाखीरो की ताकत हूं मैं।

परंतु अंतिम चरण में तुम भी थक जाओगे,
और हताश चहरा लिए जमाने से लड़ जाओगी।
ऐसा ख्याल तो पंछी उड़ा कर ले जाते है,
मैने तो बस हाथ थामा है धैर्य- हसी का।

चाहे करलो लाख सितम खोखला करदेगा काल तुम्हे,
तुम अपने अस्तित्व का भी पता नही लगा पाऊंगी।
खैरियत के लिए बताऊं तो मैं डरती नहीं,
ऐसे कलाकारो से खुदको बचाना जानती हूं।

-रित्ती

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